Description
विश्व को महान् महिलाओं में श्रीमती इन्दिरा गाँधी का विशिष्ट स्थान है। उन्होंने अपनी अद्भूत प्रतिभा, प्रशासनिक योग्यता, चारित्रिक दृढ़ता एवं कर्मठता के बल पर एक ऐसे सबल व्यक्तित्व का उदाहरण प्रस्तुत किया है जो कि मानव- जाति के इतिहास में शताब्दियों बाद ही कभी-कभी दृष्टिगोचर होता है। विकट-से -विकट परिस्थितियों का भी साहस, शक्ति एवं धैर्य के साथ सामना करने और हर परिस्थिति में अपने मानसिक सन्तुलन को बनाये रखने तथा जिस भी कार्य को करने का संकल्प ले लिया उसे पूरी शक्ति से पूर्ण करने में चाहे कितनी ही बाधाएँ क्यों न आएँ, किन्तु वे अपने निर्णय पर अडिग एवं दृढ़ रही हैं; ये कुछ ऐसी विशिष्टताएँ हैं जो सम्भवतः विश्व के कुछ गिने-चुने सफल प्रशासकों में ही दृष्टिगोचर होती हैं ।
वस्तुत: यह उनकी महानता एवं उनकी अदभूत कर्मठता का परिणाम है कि वे आज भारत की कोटि-कोटि जनता का नेतृत्व सफलतापूर्वक कर रही है। ऐसे महान व्यक्तित्व को लेकर यदि कोई काव्य लिखा जाता है तो निश्चय हो वह स्तुत्य होगा। मुझे प्रसन्नता है कि डॉ भगवान दास ‘निर्मोही ने “त्रिवेणी से त्रिलोकी” में श्रीमती गांँधी के जीवन की घटनाओं को अत्यन्त ही सहजता से चित्रित किया है।
डॉ० ‘निर्मोही’ को मैं पिछले 25 वर्षों से जानता हूँ। जब वे मेरे निर्देशन में पी-एच० डी० के लिए शोध-कार्य कर रहे थे, तब से ही मुझे पता है कि उनके मन में श्रीमती गाँधी के प्रति अद्भुत आस्था एवं भक्ति-भाव था । जब लाल बहादुर शास्त्री जी का आकस्मिक निधन हो गया था और राष्ट्र के सामने एक प्रश्न उपस्थित हुआ था कि अब भावी प्रधानमन्त्री कौन होगा ? उस समय डा० ‘निर्मोही’ ने निःसंकोच रूप में अपने मित्रों के बीच घोषणा की थी कि अगली प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांँधी होंगी और कुछ दिनों बाद ही उनकी भविष्यवाणी सही सिद्ध हो गई। सन 1971 में श्रीमती गांँधी को अद्भुत सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने काव्य-रचना प्रारम्भ की थी। इस बारे में समय- समय पर वे बराबर मुझ से परामर्श करते रहे हैं। अभी उनका काव्य पूरा नहीं हुआ था कि सन् 1977 आ गया, किन्तु डॉ० ‘निर्मोही’ ने उस समय भी घोषित किया कि वे अपना काव्य अवश्य पूरा करेंगे और साथ ही उन्होंने यह भी भविष्यवाणी की कि श्रीमती गांँधी शीघ्र ही पुनः सत्ता में आएंँगी, यद्यपि उस समय कुछ ही लोग थे जो डा० ‘निर्मोही’ की भविष्यवाणी पर विश्वास करते थे, परन्तु समय ने सिद्ध कर दिया कि कवि केवल काव्य रचयिता ही नहीं होता वह भविष्य-द्रष्टा भी होता है।
यह सम्पूर्ण काव्य डा० ‘निर्मोही’ की भावनाओं से ओत-प्रोत है। विभिन्न अध्यायों के शीर्षक ही इस काव्य की भावात्मकता के सूचक है; “एक ज्योति धरती पर आई”, “नवभारत की सुभग कल्पना”, “तन रोगी मन फौलादी था”, आदि-आदि। वस्तुतः इस काव्य में उन्होंने श्रीमती गांँधी के व्यक्तित्व की धीरता, गम्भीरता और वीरता के गुणों का चित्रण करते हुए उनके क्रमिक विकास का निरूपण काव्यात्मक शैली में किया है। इस महत्वपूर्ण रचना के लिए मैं डा० ‘निर्मोही’ को बधाई देता हूँ। मेरा विश्वास है कि इससे निश्चय ही हिन्दी-साहित्य के भंडार में अभिवृद्धि होगी ।
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