कवि का आत्म कथन

धड़कनों के तार झनझनाते रहे। उन से सुख-दुख के गीत उमगते उपजते रहे,-
जिन्हें मैं आज सदस्यों को काव्य-स्वादन करवाने के लिए पाठकों के सम्मुख
ले आया हूँ। मुझे विश्वास है उन सभी को जिन्हों ने कभी सपनों के साज पर
धड़कनों के गीत गुनगुनाए हैं, मेरे गीत गाएंगे।

मानव जीवन मुख दुख की धूप छाँह से घिरा कहीं कराह रहा है. कहीं मुस्कुरा रहा है। संसार जिस किनारे घर पहुँचे सुख पाता हूँ मैं वहीं से निराश फिर से ले आया जीवन तरी को तूफानों में .............. ये आकुल आहें राख ही तो कर देते हमारी मुस्कानों को यदि कहीं ये आँसू दयातूर हो बरस उन्हें गीला न कर देते। मैं खुश हूँ इस संधि पर जो मुस्कानों और कांसुओं में हुई...............


 

मैं तो स्मृति के मधुर क्षणों को बटोर कर उसी के ध्यान में गुनगुनाता रहा हूँ, उसी गुनगुनाहट के कुछ अवशेष यहाँ इन गीतों के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है .........


 

जब तक कामनाएं एवं लालसाएं नटी सा नाच नाचती रहता है। तब तक उस मानव उस चिर वांछित परम पुनीत महान को पा, समरस हो, उसी दिव्य में नहीं समा सकता - यद्यपि आत्मा, आतुर है, उत्सुक है, युग-युग से उस महामिलन के लिए। यह मेरी जीवन कहानी, मानव जीवन , की कहानी ही तो है। जिस का आरम्भ सृष्टि से बहुत पूर्व और अन्त प्रलय के पश्चात होता है।


जीवन के वीराने में …..भटक ही तो रहा था…किसी ने अनजाने ही थमा दिया ….अलौकिक सपनों का अभिनव दर्पण …..मेरी आँखों ने उस दर्पण में विभिन्न बिम्ब निहारे हैं …। कुछ एक विभिन्न आकर्षक आकार … यहाँ आँकने की धृष्टता मैंने की है…स्यात् आप को भी ये बिम्ब प्रतिबिम्ब भा जाएं । 


“… कलमकार का फर्ज निभा रहा हूँ, अपने अन्तर की टीस को शब्दों का जामा पहनाता आया हूँ।…प्रत्येक रचना …किसी विशेष कुलबुलाहट अथवा झटपटाहट की उपज है, … अपने गिर्द व्यवस्था का जो पतित और भ्रष्ट रूप देख-भोग रहा हूँ… काव्य-गोष्ठियों , कवि-सम्मेलनों , आकाशवाणी के उपक्रमों में … उन भावों को बीच-बीच में वाणी दी , परन्तु भय और खीझ मिल कर जिस उन्माद को जन्म देते हैं, वह इस संग्रह में ही उपजा ।… प्रत्येक इकाई पीड़ाओं का परागा' बन कर उभरी है …..।