इन्दिराञ्जलि

श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या से जिस प्रकार पूरा विश्व स्तब्ध रह गया था उसी प्रकार निर्मोही जी की लेखनी जो उस महान नेत्री पर महाकाव्य रच रही थी एकबारगी सहम कर चुप हो गई। इन्दिरांजलि उस घड़ी कवि के हृदय में उमड़े शोक और दुःख में डूबी इन्दिरा जी के जीवन की झलकियों का धारा प्रवाह वर्णन है। डॉ मनमोहन सहगल के शब्दों में ‘‘……… उस का अन्तर्मन रुदन कर उठा, चीत्कार करने लगीं कवि की संवेदनाएं और मुख पर राष्ट्रीय अवमानना की कालिख पोते कवि की लेखनी अश्रुगान को अभिव्यक्ति देने लगी।’’
स्वयं कवि के शब्दों में ‘‘…….. उनका बलिदान अन्तर के तारों और धड़कनों में स्वर भर गया। इसी धुन में कुछ एक दिनों में श्रद्धांजलि के रूप में एक स्तवक तैयार हो गया। इन पदों में उन की गरिमा तथा मेरी पीड़ा की अभिव्यंजना मात्र है।’’
‘इन्दिरांजलि’ एक लम्बी कविता के रूप में रचित हुई है, जिसमें 90 मुक्तक हैं। इन सभी में शोकपूर्ण संवेदनाओं की अभिव्यक्ति के साथ-साथ श्रीमती गांधी के व्यक्तित्व की दृढ़ता, सहनशीलता, अडिगता, एवं संकल्पशीलता के साथ-साथ उन के प्रधानमंत्रीत्व काल के कीर्तिमान तथा जीवनवृत्त की झलकियां भी चित्रित हुई हैं। इन्दिरांजलि उस घड़ी कवि के हृदय में उमड़े शोक और दुःख में डूबी इन्दिरा जी के जीवन की झलकियों का धारा प्रवाह वर्णन है। डॉ मनमोहन सहगल के शब्दों में ‘‘……… उस का अन्तर्मन रुदन कर उठा, चीत्कार करने लगीं, कवि की संवेदनाएं और मुख पर राष्ट्रीय अवमानना की कालिख पोते कवि की लेखनी अश्रुगान को अभिव्यक्ति देने लगी।’’ स्वयं कवि के शब्दों में ‘‘…….. उनका बलिदान अन्तर के तारों और धड़कनों में स्वर भर गया। इसी धुन में कुछ एक दिनों में श्रद्धांजलि के रूप में एक स्तवक तैयार हो गया। इन पदों में उन की गरिमा तथा मेरी पीड़ा की अभिव्यंजना मात्र है।’’
‘इन्दिरांजलि’ एक लम्बी कविता के रूप में रचित हुई है, जिसमें 90 मुक्तक हैं। इन सभी में शोकपूर्ण संवेदनाओं की अभिव्यक्ति के साथ-साथ श्रीमती गांधी के व्यक्तित्व की दृढ़ता, सहनशीलता, अडिगता, एवं संकल्पशीलता के साथ-साथ उन के प्रधानमंत्रीत्व काल के कीर्तिमान तथा जीवनवृत्त की झलकियां भी चित्रित हुई हैं।इस प्रकार इन्दिरांजलि कवि निर्मोही की भावनाओं और संवेदनाओं का धारा-प्रवाह प्रवाह है जिस में पाठक ऐसा बहता है कि काव्य को आरम्भ करने के बाद अन्तिम पंक्ति पर ही रुकता है। सभी छन्द बहुत सुन्दर बन पड़े हैं। सभी 90 छन्दों का अन्त ‘हो गया’ शब्दों से होता है। जो कवि के काव्य सामर्थ्य का द्योतक है। प्रत्येक पृष्ठ पर श्रीमती इन्दिरा गांधी के विविध भंगिमाओ के रेखाचित्र हैं जो इस काव्य को और भी प्रभावशाली बनाते हैं।

Description

इकत्तीस अक्तूबर, १९८४ का वह प्रात वस्तुतः अतीव दुःख एवं दुर्भाग्यपूर्ण था जिसमें प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी की क्रूर हत्या उनके ही अंग रक्षकों द्वारा कर दी गई। सहसा ही एक वज्रपात हुआ, निन्दनीय विश्वासघात हुआ भारत की जनता के साथ। जीवन का ओर-छोर हाहाकार एवं क्रन्दन से भर गया। हृदय तड़प उठा, बरबस आँसू बरसने लगे, सिसकियों का ताँता बंध गया। शून्यता काटने लगी; अभाव खलने लगे । विश्वास ही नहीं हो रहा था कि माँ हमें सदा के लिए छोड़ गई हैं। हमसे रूठ गई हैं। विदा ले गई है। उनका पार्थिव मृत शरीर सामने देखकर भी यूंँ लगता था, जैसे वे लेट रही हों और अभी उठ खड़ी होंगी और सुबह-सवेरे मिलने आने वालों से बड़े तपाक से भाग-भाग कर मिलेंगी। पर ऐसा नहीं हुआ। आँसू बहते चले गए, यादों के काफ़िले चलते रहे । अभी चार सितम्बर को तो उनके दर्शन करके आया था । शीघ्र ही उनके आगामी जन्म दिवस पर उन्हें अपनी पुस्तक ‘त्रिवेणी से त्रिलोकी’ जो उन्हीं के आदर्श एवं अनुकरणीय जीवन की पहली झांँकी है; भेंट करने की बात करके आया था। पर प्रभु की लीला बड़ी विचित्र है।

व्यक्ति सोचता कुछ और है, होता कुछ और है। बस यही मानव जीवन को विवशता एवं विडम्बना है। उनके जीवन चित्र चलचित्र के चित्रों की भांँति घूमने लगे। आँसू छन्द रचने लगे। उनके बलिदान से, उनके महान् व्यक्तित्व से मुझे आत्म अभिव्यक्ति का बरबस अवसर मिल गया। पद पे पद बनते चले गए। फलतः उनकी गुण गाथा कहते, उनका व्यक्तित्व, उनका कृतित्व, देश-हित बहाई गई पावन रक्त – बूंदों के साथ-साथ, मेरी वेदना में घुल-मिलकर पन्नों पर बिखर गया, चित्रित हो गया। उनका बलिदान अन्तर के तारों और धड़कनों में स्वर भर गया। इसी धुन में कुछ एक दिनों में श्रद्धाञ्जलि के रूप में एक स्तवक तय्यार हो गया। इन पदों में उनकी गरिमा तथा मेरी पीड़ा की अभिव्यञ्जना मात्र है।

आशा ही नहीं मुझे पूर्ण विश्वास है कि इन पदों को पढ़-सुनकर प्रत्येक व्यक्ति जीवन की उदात्त ऊंँचाइयों को छूने के साथ-साथ राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए कटिबद्ध हो, देश-निर्माण के लिए कर्मठ एवं तत्पर हो जाएगा। इसी से मुझे रचना धर्म की पूर्ति एवं प्राप्ति का आभास सहज ही हो जाएगा ।

‘डॉ० भगवानदास ‘निर्मोही’

२७- प्रोफेसज कॉलोनी,

कैथल, हरियाणा ।

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